शार्प माइंड होना बड़ी बात नहीं क्लियर माइंड होना बहुत बड़ी बात है - मुनिश्री प्रमाण सागर 



भोपाल। जीवन कें कुछ चीजें ऐसी हैं जो हमें सहज प्राप्त होती हैं और कुछ चीजें ऐसी हैं जो हमें ओरों की कृपा से मिलती हैं और कुछ चीजें ऐसी हैं जो हम अपने परिश्रम से पाते हैं पर कुछ ऐसी भी होती हैं जो केवल सुयोग्य से मिलती हैं, यह उद्गार व्यक्त करते हुए श्री पदम प्रभु जिनालय पदमनाभ नगर में मुनिश्री प्रमाण सागर महाराज ने कहा कि हम जन्म लेते हैं तो जन्म लेते ही शरीर की प्राप्ति हो जाती है, शरीर के लिये हमें किसी भी प्रकार के प्रयत्न की जरूरत नहीं पड़ती शरीर के पोषण के लिये मां का दूध भी हमें सहज मिल जाता है माता-पिता की कृपा से हमारी परवरिश और पालन-पोषण भी उनकी कृपा से हो जाता है थोड़ा परिश्रम करके पढ़-लिखकर मनुष्य धन वैभव पद प्रतिष्ठा तो प्राप्त कर लेता है इन सबको प्राप्त करने के साथ ही सद्बुद्धि को पाना बहुत दुर्लभ है, जिनका सुयोग्य होता है पुण्य का प्रबल योग होता है उन्हें ही यह सब प्राप्त हो पाता है, आप सोचिये आपकी बुद्धि आपके हित के अनुकूल है या नहीं बुद्धि का होना दुर्लभ नहीं है बुद्धि वाले सभी हैं आज की हाई टेक्नालॉजी युग में सब सूक्ष्म बुद्धि के धनी हैं सब बड़े शार्प माइंडेड हैं संत कहते हैं कि सूक्ष्म बुद्धि से क्या होगा शुद्ध बुद्धि जागृत करो शार्प माइंड होना बड़ी बात नहीं क्लियर माइंड होना बहुत बड़ी बात है मेरी बुद्धि सद्बुद्धि में परिवर्तित हो बस एक ही भावना एक ही कामना एक ही प्रार्थना जीवन में हर पल होना चािहये और यह हो जाये तो समझना जीवन तर गया । मुनिश्री ने आगे कहा कि अपने अंदर झांककर देखों कि मेरी बुद्धि की परिणिति क्या है, सूक्ष्म बुद्धि को शुद्ध बुद्धि में परिवर्तित करने के लिये क्या करना है नाली का गंदा पानी गंगा में मिलने के बाद गंगाजल बन जाता है अपनी अशुद्ध बुद्धि को शुद्ध बुद्धि बनाने के लिये सत्संग की गंगा में सम्मिलित होना पड़ेगा, सद्गुरुओं का सानिध्य हमारी बुद्धि को निर्मल बनाने का सअतिशय निमित्त है, यदि हम हृदय से सत्संग करें पर वह सत्संग अंतरंग का होना चाहिये बाहर का नहीं जैसे चंदन के वन में नीम के पेड़ में भी सुगंध आती है लेकिन उसी चंदन से लिपटे रहने वाला सांप उसमें ही जहर उगलता है, संत कहते हैं नीम के पेड़ की तरह सत्संग करना सांप की भांति कभी सत्संग मत करना कि लिपटे भी रहो और जहर भी उंडेलो, अंतरंग से अगर सत्संग का अभ्यास होता है तो अंतरंग सत्संग के प्रभाव से जीवन निरंजन बनता है जैसे वाल्मीकि ऋषि बन गये और अंजन चोर ने निरंजन पथ पा लिया था सभी ने सुना होगा कि पारसमणि के स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है, सद्गुरु पारसमणि हैं पर जिस लोहे में रंग या जंग है वह सोना नहीं बनता तुम सत्संग में आते हो और अपने अंदर पूर्वाग्रह की जंग चढ़ाये रखते हो और आशक्ति का रंग लगाकर आते हो तो अंतरंग में सत्संग की तरंग उत्पन्न ही नहीं होगी उसे साफ करो मन को निर्मल करते हुए जीवन की दिशा बदलने के लिये सकारात्मक सोच के साथ चलना सीखो ।